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Thursday

बचपन की यादें

याद आती है बचपन की प्यारी सी यादें,
गाँव की मिट्टी की खुशबु की सौगातें;
नंगे पाँव भी कभी स्कूल जाता था मैं,
स्कूल मे सबसे अग्रणी कहलाता था मैं;
माँ के हाथों की मक्की की रोटी और साग,
अगर मिल जाता तो सचमुच आ जाता स्वाद;
पशुओं को चराते थे हम बनाकर टोली,
खेलते थे दोपहरि में हम आँख मिचौली;
खेतों में पापा हल को चलाते,
बैलों की पीठ को खूब वो थपथपाते,
अच्छे संस्कार वो हमेशा हमें थे सिखाते;
माँ भी कँधे से कँधा मिलाकर,
चलती थी पापा की छाया वो बनकर;
आती थी जब बरसात, लाती थी सौगात,
लाल पीले आमों की मिलती थी खुराक;
आज भी फ़ुरसत में, मैं वोह लम्हे याद करुँ,
दिल चाहे फ़िर से बन जाऊँ वही पँछी आजाद!

कविता के रचयिता - विजय कुमार गुलेरिया

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