माँ मुझ को दो एक कन्या |
नन्ही मुन्नी सी प्यारी सुकन्या |
करता रहुँगा लाड दुलार |
तेरी माँ हो जय-जय कार |
बेटी है इस जग गहना |
यह है माँ, बेटी और बहना |
न करो तुम इसका तिरस्कार |
दो इसको थोड़ा सा प्यार |
बेटी को अपमानित करके, न सुख तू कभी पाएगा |
मिट जाएगा अस्तित्व तेरा, सूखी शाख रह जाएगा |
गर तू माँ दुर्गा को माने, जगदम्बा जगजननी को जाने |
रख बेटी के सिर पर हाथ, कर बुलन्द इसका स्वाभिमान |
दो इसको अच्छी सी शिक्षा, न माँगे यह रहम की भिक्षा |
दो इसको भी जीने का हक, न कर इसका गर्भ में वध |
तेरे दुख दर्द में यह दौड़ी - दौड़ी आएगी |
तुम को दुखी देखकर इसको चैन कभी न आएगी |
मुनियाँ रानी के बिन मुझ को घर लागे अति सूना |
बिन इसके ना जीना चाहुँ इस जग मेँ एक पल ना ||
कविता के रचयिता - विजय कुमार गुलेरिया
नन्ही मुन्नी सी प्यारी सुकन्या |
करता रहुँगा लाड दुलार |
तेरी माँ हो जय-जय कार |
बेटी है इस जग गहना |
यह है माँ, बेटी और बहना |
न करो तुम इसका तिरस्कार |
दो इसको थोड़ा सा प्यार |
बेटी को अपमानित करके, न सुख तू कभी पाएगा |
मिट जाएगा अस्तित्व तेरा, सूखी शाख रह जाएगा |
गर तू माँ दुर्गा को माने, जगदम्बा जगजननी को जाने |
रख बेटी के सिर पर हाथ, कर बुलन्द इसका स्वाभिमान |
दो इसको अच्छी सी शिक्षा, न माँगे यह रहम की भिक्षा |
दो इसको भी जीने का हक, न कर इसका गर्भ में वध |
तेरे दुख दर्द में यह दौड़ी - दौड़ी आएगी |
तुम को दुखी देखकर इसको चैन कभी न आएगी |
मुनियाँ रानी के बिन मुझ को घर लागे अति सूना |
बिन इसके ना जीना चाहुँ इस जग मेँ एक पल ना ||
कविता के रचयिता - विजय कुमार गुलेरिया
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